आज मैंने एक विज्ञापन देखा सच में दिल को छू गया उसमें एक नवविवाहित जोड़ा तैयारी कर रहा होता है अपने घर में एक नए सदस्य के आने की ।उसे लेकर वह लोग बहुत उत्साहित और कुछ चिंतित भी होते हैं कि क्या वह अपनी जिम्मेदारियां अच्छी तरह से निभा पाएंगे वह दोनों एक दूसरे को इस बात के लिए प्रोत्साहित वह आशान्वित करते हैं कि वे बहुत नेक कार्य करने जा रहे हैं जो ना केवल समाज के लिए बल्कि उनके परिवार के लिए भी बहुत अच्छा होगा इसके बाद वह नवविवाहित जोड़ा एक वृद्ध आश्रम में जाता है और वहां से एक वृद्ध महिला को अपनी मां बनाकर घर लेकर आता है यह दृश्य अति हृदय स्पर्शी लगता है आज जहां पर भारतीय परिवार का स्वरूप बदल रहा है संयुक्त परिवार की परंपरा विस्मृत होती जा रही है और भारतीय परिवार छोटे और एकल परिवार का मानक बनता जा रहा है वही इस तरह के उदाहरण हम सभी के लिए एक दिशा सूचक प्रेरणा का कार्य कर रहे हैं ।विडंबना की बात तो यह है कि यह भारतीय संस्कृति जो” सेवा परमो धर्म “को उद्धृत करती है तथा बहुत सारे आदर सूचक संस्कारों व कर्तव्यों के लिए जानी जाती है जहां सदैव ही घर के बुजुर्गों को बहुत सम्मान दिया जाता है उनकी आज्ञा का पालन किया जाता है ,और उनके अनुभवों से नई पीढ़ी का पोषण किया जाता है , वहीं आज भारत में अधिक संख्या में वृद्ध आश्रम बन रहे हैं और सबसे ज्यादा शर्मनाक बात यह है कि इस तरह के कृत्य अधिकतर तथाकथित मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग के परिवारों से हो रहे हैं वास्तव में हमारी वर्तमान पीढ़ी किसी छद्म आजादी की चाह में इतनी भ्रमित हो चुकी है कि सहनशीलता ,सहृदयता ,सेवा और प्रेम जैसे मूल्यों का परित्याग करने के लिए आतुर है आधुनिकता प्रतिस्पर्धा और तरक्की की होड़ में वह इतनी अंधी हो चुकी है कि जीवन चक्र के इस क्रम का निरंतर अनादर करती जा रही है ।अज्ञात भविष्य की कल्पना में वर्तमान को अंधकारमय बना दिया गया है मोह व स्वार्थ के वशीभूत होकर वह आज जो अपने बच्चों को दे रहे हैं वह कल उन्हीं के लिए बहुत घातक सिद्ध होगा। बेहतर होगा कि हम समय रहते संभल जाए अन्यथा जो आज उनका है वही हमारा कल होगा जो प्रेम और विश्वास हम अपनी संतान को दे रहे हैं और अपेक्षा कर रहे हैं कि हमें भी मिले तो उसकी शुरुआत बस यही से करनी होगी। अपने बुजुर्गों का सम्मान करें, सेवा सुश्रुषा करें कर्मों से शुद्ध रहे बाकी तो सब अज्ञात है, मात्र अनअस्तित्व में अस्तित्व की तलाश है।
तुलसीदास जी ने कहा है
कोऊकर तर्क बढ़ावहीं शाखा होनी वही जो राम रचि राखा।।




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Right…
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Reblogged this on B +Ve!!.
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